लेखनी कहानी -07-Nov-2022 हमारी शुभकामनाएं (भाग -28)
हमारी शुभकामनाएं:-
कन्यादान एवम पग- धोई की रस्म:-
थोड़ी देर पश्चात् पंडित जी ने भूमिका के ताऊजी और ताइजी को बुलाया एवम कुछ प्रक्रिया करने लगे जिसमे उन्होंने वर और वधू के हाथों को एक दूसरे के हाथों पर रख कर भूमिका के ताऊजी और ताईजी के हाथ रखे। यह देख कर भूमिका ने मां से फिर से जिज्ञासा वश प्रश्न किया कि पंडितजी यह क्या करवा रहे हैं अथवा इसका अर्थ क्या है? तब मां ने उसे बताया कि पंडित जी कन्यादान करवा रहे हैं।
कन्या दान का अर्थ होता है \'कन्या का दान\' अर्थात माता-पिता अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में सौंपता है। इसके बाद से कन्या की सारी जिम्मे्दारियां वर को निभानी होती हैं। वर कन्या के पिता को उसे जिंदगी भर खुश रखने का वचन देता है।
साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि जब कन्या के माता-पिता शास्त्रों में बताए गए विधि-विधान के अनुसार कन्यादान की रस्म निभाते हैं तो कन्या के माता-पिता और परिवार को भी सौभाग्यं की प्राप्ति होती है। हिंदू शास्त्रों में कन्यादान को सबसे बड़ा दान माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार विवाह के दौरान वर को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। विष्णु रूपी वर कन्या के पिता की हर बात मानकर उन्हें यह आश्वासन देता है कि वह उनकी पुत्री को खुश रखेगा और उस पर कभी आंच नहीं आने देगा।
शास्त्रों में कन्या दान को सबसे बड़ा दान माना गया है इसलिए ऐसा कहा जाता है कि जिन माता-पिता को कन्या दान का सौभाग्या प्राप्त होता है उनके लिए इससे बड़ा पुण्य कुछ नहीं है। यह दान उनके लिए मोक्ष की प्राप्ति का रास्ता भी खोल देता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के बाद कन्या दान किया था। 27 नक्षत्रों को प्रजापति की पुत्री कहा गया है जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ था। इन्होंने ही सबसे पहले अपनी कन्याओं को चंद्रमा को सौंपा था ताकि सृष्टि का संचालन आगे बढ़े और संस्कृति का विकास हो। इन्हीं की पुत्री देवी सती भी थीं जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ था।
कन्या दान करते समय माता-पिता कन्या के हाथ हल्दी से पीले करके कन्या के हाथ में गुप्तदान धन और फूल रखकर संकल्प बोलते है और उसके हाथों को वर के हाथों में सौंप देते हैं। इसके बाद वर कन्या के हाथों को जिम्मेदारी के साथ अपने हाथों में पकड़ कर स्वीकार करता है कि वो कन्या की जिम्मेदारी लेता है और उसे जिंदगी भर खुश रखने का वचन देता है। माता-पिता कन्या के रूप में अपनी पुत्री पूरी तरह से वर को सौंप देते हैं।
इस प्रकार कन्या दान का अर्थ, महत्व एवम ज्ञान मां ने भूमिका को प्रदान किया। इसके पश्चात् पग - धोई की रस्म आरंभ हुई। इस रस्म में सबसे पहले माता- पिता अपनी पुत्री और जमता के पैर धोए हैं और उन्हें भेंट स्वरूप कुछ देते हैं। उनके पश्चात् एक - एक करके सभी रिश्तेदार जो वहां मौजूद होते हैं, इस रस्म को करते हैं और जो वर- वधु को कुछ भेंट देना चाहते हैं। वह भी इस रस्म को कर सकते हैं।
इस प्रकार भूमिका की मां ने भूमिका को पग- धोई के विषय में बताया और वर- वधु के पैर धोकर उन्हें भेंट प्रदान की और उन्हें भावी जीवन के लिए ढेर सारा आशीर्वाद भी दिया।
#30 days फेस्टिवल / रिचुअल कम्पटीशन
Gunjan Kamal
17-Nov-2022 01:47 PM
बहुत ही सुन्दर
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आँचल सोनी 'हिया'
16-Nov-2022 04:28 PM
Very nice 👍🌺💐
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Swati Sharma
16-Nov-2022 09:21 PM
Thank you 🙏🏻💐
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